लेखनी कहानी - करवाचौथ
करवाचौथ
स्नेहा को बहुत चाव चढ़ा हुआ था। हो भी क्यों ना? उसका पहला करवाचौथ जो था। रोहन भी उसकी खुशी में बराबर शामिल था।
एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत दोनों कब प्यार करने लगे और शादी हो गई, उन्हें पता ही नही चला। शादी को 6 महीने ही हुए थे और अब वो मुंबई में अपने सपनों का घर बनाने में लगे हुए थे।
स्नेहा की ससुराल उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के एक छोटे से गांव में थी। भरा पूरा परिवार था उसके ससुराल में और सबसे प्यारी जो थीं वो थी उसकी सास। स्नेहा को अपनी बेटी ही मानती थीं वो। कभी कोई शिकायत या गुस्सा नही किया। हर बात को अच्छे से पहले ही समझा दिया करती थीं। स्नेहा भी उनसे बहुत ज्यादा प्यार और सम्मान करती थी। इसीलिए स्नेहा अपना पहला करवाचौथ, अपने ससुराल में ही मानना चाहती थी।उनके साथ को बहुत याद कर रही थी वो।
सुबह सुबह सास का बहु को सरगी और श्रृंगार देना, दोपहर को कहानी सुनाना और रात को चांद की पूजा, सभी कुछ वो बहुत याद कर रही थी।
पर ऐन मौके पर स्नेहा और रोहन की छुट्टी कैंसिल हो गई, जिसके कारण वो बहुत उदास थी। उसकी सासू मां भी यहां नही आ सकती थीं क्योंकि गांव घर की सारी जिम्मेदारी उन्ही पर थी।
कल करवाचौथ है। रात को हाथों में मेंहदी लगवाते हुए स्नेहा की आंखें छलक पड़ी। रोहन ने उसे देखा और आंसू पोंछते हुए बोला," क्या हुआ स्नेहा? आंखों में आंसू क्यों हैं? तुम ठीक तो हो ना?" स्नेहा ने गर्दन हिलाकर कर कहा," हां रोहन, मैं ठीक हूं, पर मुझे मम्मी जी की बहुत याद आ रही है। मैं अपना पहला करवाचौथ का व्रत उन्ही के साथ करना चाहती थी। मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा।"
रोहन, स्नेहा को गले लगाते हुए बोला," तो क्या हुआ स्नेहा,जो हम गांव नहीं जा पाए, मां का आर्शीवाद तो है ना हमारे साथ। मां नहीं आ सकीं तो कोई बात नही, मां का लाड़ला तो तुम्हारे साथ है ना। या फिर तुम मुझे ही अपनी सास समझ लो।" आंख मारते हुए रोहन स्नेहा के चहरे पर मुस्कान ले आया।
सुबह चार बजे, रोहन ,स्नेहा को जगाते हुए बोला," उठो बहू, चलो सरगी का समय हो गया है,कुछ खा लो।" स्नेहा नींद से जागते हुए बोली, "ये सब क्या है रोहन?" रोहन हंसता हुआ बोला," मैंने कहा था ना कि मुझे ही अपनी सास समझ लो। चलो अब जल्दी से उठो।"
डाइनिंग टेबल पर खाने का बहुत सारा सामान देख स्नेहा बोली," ये सब तुमने बनाया है?" रोहन बोला," अरे नही नही, मैं इतना बड़ा शेफ नहीं हूं। मैने कल ही बाहर से मंगवाया था।" इसके बाद रोहन ने स्नेहा के हाथों में एक खूबसूरत सी साड़ी और श्रृंगार का सामान थमाया और मुस्कुराते हुए बोला," देखो बहू, अच्छे से व्रत करना, और मेरे बेटे की उम्र और लंबी करना।"
स्नेहा एक दम से रोहन के गले लग गई और बोली," मैं कितनी किस्मतवाली हूं ना,रोहन! जो मम्मी जी जैसी प्यारी सी सास और तुम्हारे जैसा जीवनसाथी मुझे मिला।"
रोहन उसको बाहों में कसते हुए बोला," सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी बहुत किस्मत वाला हूं, जो तुम मेरी जिंदगी में आईं। चलो , अब कुछ खा लो, कल तुम्हें पूरे दिन कुछ नही खाना है। तुम्हे भूखा रहने की आदत नहीं है ना? पता नहीं, तुम कैसे ये व्रत पूरा करोगी।"
स्नेहा बोली," तुम्हारा प्यार है ना, वो ताकत देगा मुझे।"
शाम तक भूखे रहने की वजह से स्नेहा की तबियत बिगड़ने लगी, पर वो चुप चाप बैठी अपना काम करती रही। पर अब उसे चक्कर आ गए और वो बेहोश हो गई। रोहन एक दम घबरा गया और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगा। उसने जल्दी से डॉक्टर को फोन लगाया। डॉक्टर ने उसे कहा, घबराने की बात नही है,बस भूख की वजह से कमज़ोरी आ गई है। इन्हे कुछ खिला दो।
स्नेहा के होश में आते ही, रोहन ने उसे कुछ खाने के लिए कहा। पर स्नेहा नहीं मान रही थी। उसे अपना व्रत पूरा करना था।
हारकर रोहन ने अपनी मां को फोन मिलाया और सारी बात बताई। रोहन की मां ने उसे वीडियो कॉल करने को बोला। वीडियो कॉल पर रोहन की मां ने स्नेहा को प्यार से समझाया," देखो बेटा, रीति रिवाज़ हम इंसानों ने ही बनाए हैं ना। पर सबसे जरूरी है आपस का प्यार। रीति रिवाज, व्रत त्योहार सब कुछ हमारे बीच के प्यार पर टिके हुए हैं। देखो आज व्रत की वजह से तुम्हारी तबियत बिगड़ गई। तुम्हे आदत नही है ना। तो कोई बात नहीं, तुम कुछ खा लो, नही तो तबियत और भी खराब हो सकती है।"
स्नेहा आंखों में आंसू भरकर बस इतना ही बोल पाई, " चांद के आने के बाद।"
रोहन की मां ने रोहन से पूजा की थाली लाने को कहा।
रोहन पूजा की थाली ले आया। रोहन की मां ने स्नेहा से कहा," स्नेहा, पूजा की थाली लो और देखो तुम्हारा चांद तो तुम्हारे ही सामने खड़ा है। इसके प्यार की चांदनी से तो तुम्हारी झोली भरी हुई है ना, तुम छलनी ने अपने चांद को देखो और व्रत खोलो।"
फिर उन्होंने रोहन से कहा," चल, मेरी बहू का व्रत खुलवा जल्दी से।"
बड़ी मुश्किल से रोहन स्नेहा को बालकनी तक लाया, स्नेहा ने अपनी पूजा पूरी की। मां ने दोनो को ढेर सारा आशीर्वाद दिया। स्नेहा की आंखों से आंसू बह निकले। मां ने रोहन को कहा," देख, मेरी बेटी को चुप करवा, नही तो तेरी खैर नहीं।" रोहन स्नेहा के आगे हाथ जोड़ते हुए बोला," चुप हो जा स्नेहा, नही तो मां मुझे नही छोड़ेंगी।"
इतना बोलते ही स्नेहा रोते रोते खिलखिला उठी। दोनों ने मां को प्रणाम किया और फोन बंद कर एक दूसरे में खो गए।
सामने क्षितिज पर चमकता चांद भी मुस्कुराते हुए उनके प्यार में शामिल हो गया।।
प्रियंका वर्मा
13/10/22
Pratikhya Priyadarshini
18-Oct-2022 01:18 AM
Achha likha hai 💐
Reply
Abeer
17-Oct-2022 12:29 PM
Bahut khub
Reply
आँचल सोनी 'हिया'
16-Oct-2022 02:58 PM
Achha likha hai 💐
Reply